स्पेशल फैन की कला के मुरीद हुए अमिताभ

स्पेशल फैन की कला के मुरीद हुए अमिताभ


बस इतना कर पूरी कर दी बच्चे की मुराद





खरगोन। कहते हैं मन में जुनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं होता. ऐसा ही कुछ कर दिखाया मध्य प्रदेश के खरगोन के आयुष कुंडल ने. आयुष हाथ और पैर से दिव्यांग हैं. वो बोल भी नहीं सकता लेकिन शारीरिक कमियों के बावजूद वो सपने देखता है और उन्हें पूरा करने का माद्दा भी रखता है. ईश्वर ने उसे ऐसी अनूठी कला से नवाजा कि खुद सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी उनके फैन बन गए. आयुष ने दिव्यांग होने के बाद भी अपने पैरों से अमिताभ बच्चन की ऐसी पेंटिंग बनाई कि अमिताभ बच्चन खुद को उससे मिलने से रोक नहीं सके. अमिताभ बच्चन ना सिर्फ मुंबई में आयुष से मिले बल्कि उनकी पेंटिंग्स भी देखी और आयुष को आशीर्वाद भी दिया।


मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के बड़वाह की सुराणा के आयुष कुंडल से सदी के महानायक अमिताभ बच्चन मिले और यह संभव बनाया खुद आयुष ने. आयुष ने पूर्ण दिव्यांग होने के बावजूद एक पैर से पेंटिंग बनाने का हुनर सीखा. इतना ही नहीं वो आज के युवाओं की तरह टेक्नॉलॉजी से भी जागरुक हैं. मोबाइल पर वाट्सएप , फेसबुक और ट्विटर चलाना भी उन्हें आता है. आयुष शुरू से अमिताभ बच्चन का फैन रहे हैं. उन्होंने अमिताभ बच्चन की कई पेंटिंग बनाई है. उनकी एक पेटिंग अमिताभ बच्चन की पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात की भी है. इन पेंटिंग्स को वो अपने दोस्तों को मोबाइल, वाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर पर अपलोड करके शेयर करते रहते है. इस वजह से वो ‘अमिताभ बच्चन फैंस ग्रुप बॉम्बे’ के दो फॉलोअर चेतन और सुरेश जुमानी से जुड़ गए. इसी के जरिये आयुष ने अमिताभ से मिलकर उनकी पेंटिंग उन्हें सौंपने की इच्छा जाहिर की।


बस यहीं से आयुष के शौक की जानकारी अमिताभ बच्चन तक भी पहुंच गई. उन्होंने आयुष को निराश नहीं किया और उससे मिलने की स्वीकृति दे दी. एक फरवरी को नर्मदा जयंती पर दिव्यांग आयुष कुंडल का सपना पूरा हो गया. आयुष अपने माता-पिता और एक सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र सुराणा के साथ अमिताभ फैंस क्लब के भवन में अपने महानायक से मिले. करीब 20 मिनट तक अमिताभ उनके साथ रहे. आयुष की बनाई अपनी पेंटिंग्स देखी. अमिताभ की एक पेंटिंग को पचास हजार रुपये में अमिताभ फैंस क्लब ने खरीदी जो क्लब में लगाई जाएगी।


आयुष की मां सरोज कुंडल का कहना है कि आयुष आठवीं तक ब्रेललिपि से पढ़ा है. दिव्यांग होने को उसने कभी अभिशाप नहीं समझा।